Chaplusi, भाईबंद, bhaibandi, चापलूसी हिंदी - कविता

Kavita kunji


गुनाह गर वो करें,
तो सब क्षमा -ए- भूल समझें।

हुक्म को तोड गर आगे बढ़ें,
तो उन्हें मजबूर समझें।।

वे जो चाहें सो करें,
और बेखौफ करते रहें।

हमारी छोटी भूल भी,
गुनाहों में गिनते रहें।।

क्या गजब की कूटनीति,
दुतरफा दगा -ए- खेल है।

किसी के दोनों हाथ घी में,
तो किसी का तेल है।।

हम सीधे साधे चले,
इस जिंदगी की राह में।

हम भी नंबर वन बनें,
मेहनत करी, इस चाह में।।

मगर यहां मेहनत नहीं,
चापलूसी का गेम है।

हमने लस्सी दी बॉस को,
मगर उसे तो पसंंद जैम है।।

बस सुबह से शाम ही हुई,
कि बॉस भी बदले नज़र आए।

जिस पर हक़ था हमारा,
वहां कोई और नजर आए।।

आज लगता है शराफ़त गई तेल लेने,
सिर्फ झूठ का सहारा है।
मेहनती खाता टुकाई और हरामी तारीफ पा रहा है।।

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