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पहचान मुश्किल


दूर रहकर जख्म दे शायद तुम उसे दुश्मन कहोगे।

मगर साथ रह कर ही धोखा करे तुम उसे क्या कहोगे।।


फिर भी आज निपटना आसान है दुश्मनों से।

बड़ा पेचीदा काम है, बचना' अपने जनों से।।

जंग ए मैदान में फिर भी विकल्प दो होंगे।

दुश्मन मरेगा या न्योछावर आपके प्राण होंगे


हमदर्द के साए में जो जहर दे प्यार से उसे क्या कहोगे।

मगर साथ रह कर ही धोखा करे तुम उसे क्या कहोगे।।


सुंदर नकाब में क्या छुपा है तुम्हे क्या पता।

दोस्ती की आड में दुश्मन सा जख्म दे तुम्हारी क्या खता।।

गुंजाइश है  हर न्याय में आज यहां भ्रष्टता की।

संभावना भी साफ है छेड़खानी हो सत्यता की।।


तब ऐसे हालत में मेरे दोस्त किसे गद्दार कहोगे।

मगर साथ रह कर ही धोखा करे तुम उसे क्या कहोगे।।


यहां हम देखते भी वही हैं जो दूसरा दिखा रहा है।

मेरी काबिले तारीफ, चाहे पीछे कोई पसीना बहा रहा है।।

हद से ज्यादा गिरा इंसा स्वार्थ वास्ते कर्म है शोषण का।

आज जायज सब कुछ हुआ लालच है रोकड़ का।


फिर भी कंगाल बन दिखे रोड पर उसे क्या कहोगे।

मगर साथ रह कर ही धोखा करे तुम उसे क्या कहोगे।।

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