जीवन में अभिनय - Jiwan mein abhinay
जिंदगी को युद्धक्षेत्र मानो या प्रयोगशाला।
रंगमंच, मंदिर या फिर मधुशाला।।
पृष्टभूमि खुद के लिए खुद तय करो।
हर रोज हंसके जियो या हर रोज मरो।।
कलाकार खुद हो निर्देशक भी आप।
निर्माता भी आप, तो फिर क्यों पश्चाताप।।
फैसला भी सही गलत का, है आपके हाथ।
सत्यवादी बनो या जियो झूठ के साथ।।
जांचे, जो सांसे ले रहे हो क्या हैं चैन की।
रोल हीरो का है या फिर भूमिका बिलेन की।।
कुछ पल ठहरें अभिनय की पड़ताल करें।
शिकायतें छोड़ गुंजाइश हो तो सुधार करें।।
वैसे जिंदगी में एक बात सामान्य है।
कर्मों में बदलाव करें जब भी लगे हानि है।।
वरना पछताना तो जिंदगी में आम है।
न कोई दुश्मन, न कोई किसी की जान है।।
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Social Poem