पाखंड
फलफूल रहा पाखंड दक्षिणा मोटी पाते।
लुटने के उपरांत बेचारे फिर नहीं जाते ।।
इस घटना का जिक्र नहीं किसी को बतलाते।
पड़ोसी भी लूट जाए, इलाज चोखा बतलाते।।
लुट जाने के बाद पड़ोसी दोनों मन मुस्काते।
फिर तृतीय शिकार को ये दोनों देखो कैसे समझाते।।
भाई घंणा होता चमत्कार सभी चकित हो जाते।
वहां लंगड़ा करता जंप गूंगे से इंग्लिश बुलवाते।।
जाके देख दरबार बदल जायेगी काया।
हाथ दबाके पड़ोसी का, फिर आंख मार मुसकाया।।
गया बेचारा दरबार मिल गया दल्ला फेरी।
कटा पांच हजार की पर्ची, अर्जी पहली तेरी।।
जाके बैठ गया दरबार खाली कर अपनी थैली।
बाबा ने किया चमत्कार लगा दी अर्जी पहली।।
आजा रामभरोसे तेरे घर काली छाया।
मरने से तीन बार बचा तू, मौत तेरी निश्चित भाया।।
गिर पड़ा बाबा के पैर बचा लो किस्मत मेरी।
बाबा ने कान मे कहा, मिला! तू हां में हां मेरी।।
चटकी बिल्कुल नहीं, न तो फिर होगा भंगड़ा।
बाबा के एक इशारे पर बाउंसर आ गया तंगडा।।
फिर क्या था एक के बाद एक चमत्कार दिखलाए।
ताली बजने लगीं मन बाबा हर्षाए।।
इक्कीस किलो की भेंट उधर साइड में कर दो।
तुम्हारे भूखे बैठे पितर, पेट उनका तुम भर दो।।
अब गोली सी चुभने लगी बज रही थी जो ताली।
बन ठंठन गोपाल, "रामभरोसे" घर लौटे खाली।।
अब हुआ कर्मों का ज्ञान, प्रारब्ध खत्म नहीं होता।
न तो कान्हा का प्राकट्य जेल मथुरा में नही होता।।
बड़े बड़े सब संत दरबार को ढोंग बताते।
संत प्रेमानंद इशारों में ही सब कह जाते।।
गलत नहीं पाखंड, गलत है जनता सारी।
लुट जाने के बाद भी, बैठ बजाते ताली।।
गुरु प्रदत्त नाम, मंत्र को जप ले प्यारे।
कट जायेंगे कष्ट, मिटेंगे दुख तुम्हारे।।