Bachpan best poem।। बचपन दिल को छू लेने वाली कविता

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चैन की सांसे ले आओ

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जीवन की आपाधापी में फिर चैन की सांसे ले आओ।

सूनी उन गांव की गलियों में फिर से किलकारी ले आओ।।


बचपन के वह गुल्ली डंडा, और खेल कबड्डी ले आओ।

बहुत खा लिया पीजा बर्गर, चूल्हे की रोटी ले आओ।।


अवसाद झलकता चहरे से वो हंसी होठ पे ले आओ।

कोई तो समझो दिल की पीड़ा, मां का मरहम ले आओ।।


बहुत हुआ भ्रमण शहरों का चौपाल गांव की ले आओ।

पेड़ अभी भी होंगे वहीं पर कोई छांव आम की ले आओ।।


स्कूल राह की पगडंडी में वह तपती-दोपहरी ले आओ।

रस्ते चलते वह खेल ठिठोरी छीना झपटी ले आओ।


महास्साब की वो गुस्सा और मार छड़ी की ले आओ।

अंताछरी की हार जीत और बाल सभा भी ले आओ।।


ज्ञान समझ की इस बुद्धि में नासमझी को ले आओ।

नहीं चाहिए मुझे फेसबुक मेरी मित्रमंडली ले आओ।।


छुपाछुपी और आंख मिचौली कंचा कंकड़ ले आओ।

जीवन के इस नीरस पल में महत्वाकांक्षा ले आओ।।


नहीं चाहिए मूर्त हकीकत वो सपनों के पल ले आओ।

जीवन की आपाधापी में फिर चैन की सांसे ले आओ।।





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