Spritual Poem । प्रभु की महिमा सुंदर कविता

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प्रभु की कृपा


मेरी क्या सामर्थ्य प्रभु, जो लिख पाऊं तेरे बारे में।

तू बिद्धयमान हर जगह प्रभु, तरु धरती चंद्र सितारे में।।


सानिध्य तुम्हारा गर मुझ पर, तो खुश हूं मैं फिर हारे में।

हुंकार के पीछे है कृपा, न तो कहां हौसला हमारे में।।


गूंगे भी शास्त्र बखान करें, पंगु पर्वत चढ़े इशारे में।

अज्ञान धर्म की क्या हिम्मत, जो लिख पाए तेरे बारे में।।


तू परे है मानव बुद्धि से, कहां क्षमता मनुष्य विचारे में।

दुर्लभ है तुझको पाना, तू कैद प्रेम के तारे में।।


तू बिद्धयमान हर जगह प्रभु, तरु धरती चंद्र सितारे में।

मेरी क्या सामर्थ्य प्रभु, जो लिख पाऊं तेरे बारे में।।


हर समय तेरी कृपा बरसे, सुख दुख संकट और लाले में।

जो सुख तुझको बिसराऐ, कर ऐसी खुशी किनारे में।।


जिस छण ये दिल तुझको भूले, आग लगे इस हत्यारे में।

बस होठों पे तेरा नाम रहे, मैं खुश हूं एक निवाले में।।


तू बिद्धयमान हर जगह प्रभु, तरु धरती चंद्र सितारे में।

मेरी क्या सामर्थ्य प्रभु, जो लिख पाऊं तेरे बारे में।।

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