Rahmat Par Kavita l Phool Ki Rahmat

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फूल की व्यथा 

कभी किस्मत न अजमाने का मौका दिया भगवान ने।

वरना हम भी कम नहीं थे इस लहलहाते बागान में।।



हम में भी वही खुशबू थी जिन्हें पड़ोस से माली ने तोड़ा।

ऐसी क्या नाराजगी हमसे कि हमे सूंघ कर यूं छोड़ा।।


यही किस्मत का कटाक्ष हम पर कि हमें छोड़ वो पसंद आए।

हम एक ही डाली के दो फूल थे वे मंदिर में और हम शमशान नजर आए।।


मानते हैं किस्मत भी कर्मों से गढ़ी गई है।

मगर यहां तक पहुंचने में भी एक लंबी लड़ाई लड़ी गई है।।


लगता है लंबित पड़े हैं केस भगवान के भी कोर्ट में।

किस्मत का जजमेंट मत दे दे कर्म का फल शॉर्ट में।।


अपनाले तू भी फिलोस्फी तुरंत दान महा कल्याण की।

कर गुमान उनका भी ठंडा जिन्हे गुम्मक है अभिमान की।।


मुझे परवाह न अपनी बस है फिक्र इंसान की।

मेरा क्या मंदिर चढ़ूं या स्वागत-ए-फुलझड़ी बनूं मेहमान की।

गले में प्यार की निशानी बनूं या सुपुर्द-ए- खाक बनूं शमशान की।।


तू रहनुमा बन खुदा रहमत अपनी यूं दिखाना।

बस  इंसान में इंसान के प्रति नफरत मिटाना।।

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