Deshbhakti Kavita - देशभक्ति पर कविता

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स्वर्णिम विजय वर्ष


 चलो मनाएं स्वर्णिम विजय वर्ष, हर्ष उल्लास से।

दुश्मन भागता रण छोड़ के, हमारी सेना के साहस से।।

 मिशाल बना दी थी सेना ने, सन् इकत्तर के संग्राम की।

विश्व अचंभित था जब, पाकिस्तानी सेना नब्बे हजार गुलाम की।।

आज भी रूह कांपती है, सुन भारतीय सेना के किस्से।

कश्मीर से आंख हटा ले तू, न तो होंगे तेरे अनगिनत हिस्से।।

हर बार करारा जबाव दिया, तेरी हर धोखेवाजी का।

अब बदल दिया, "एक गाल पे खाओ दूजा करदो" यह नारा गांधी का।।

अब यह नए भारत की सेना है, जरा संभाल के लाहौर रखना।

हम कहते हैं वो करते है, अपनी फितरत नहीं तेरी तरह बकना।।

अनुशासन में रहकर, जीते हैं शान से।

हम गौरवमय होते हैं, अपने तिरंगे के सम्मान से।।

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