महिमा श्रीहरि के नाम की
हे! प्रभु यह कैसा भ्रमजाल बना दिया।
जिसने जो चाहा उसको उसी में रमा दिया।।
आप सर्वशक्तिमान, जीव आप द्वारा पाला जाता।
फिर क्यों विमुख होकर, जीव बेचारा भटक जाता।
संकल्प ठानता तुम्हें पाने को, मगर फिसल जाता।
यह धूर्त काम, क्रोध, लोभ पटक मार जाता।
मन की व्यथा बता कर रोया, फिर मेरे गुरुवर ने समझाया।
संकल्प में दृढ़ता लाओ और गुरुमंत्र ही मूल बताया।।
गुरु ने ऐसी महिमा गाई 'श्रीहरि' के नाम की।
एक 'नाम' मात्र ही सीढ़ी है, मेरे कृष्ण के धाम की।।