ये लोग शहर के ।। Best poem on life
जरा सोच जिंदगी को ‘धर्म’, एक पल ठहर के।
आगे निकलने की होड़ में, कहां जा रहे ये लोग शहर के?
कुछ पाने की चाह में, बहुत कुछ खो रहे।
आखिर तेरी चाहत क्या, सोच जरा ठहर के।।
आगे निकलने की होड़ में, कहां जा रहे ये लोग शहर के?
जरा सोच जिंदगी को ‘धर्म’, एक पल ठहर के।।
ढूंढ इस भीड़ में, उस गुरु रूपी नाव को।
क्यों डूबना भला, इस गहरी नदी में तहर के।।
आगे निकलने की होड़ में, कहां जा रहे ये लोग शहर के?
जरा सोच जिंदगी को ‘धर्म’, एक पल ठहर के।।
रुक! उस ओर देख, जो देखता तुझको सदां।
तू भूला उसके प्रेम को,यहां भौतिकता में बहल के।।
आगे निकलने की होड़ में, कहां जा रहे ये लोग शहर के?
जरा सोच जिंदगी को ‘धर्म’, एक पल ठहर के।।
तू माध्यम से मालिक बना, झूठा बहम पाल कर।
तुम तो सिर्फ बुलबुले इस बड़ी नदी की लहर के।।
आगे निकलने की होड़ में, कहां जा रहे ये लोग शहर के?
जरा सोच जिंदगी को ‘धर्म’, एक पल ठहर के।।
वक्त जिसकी देन है, उसके लिए कहां वक्त है?
तू व्यस्त होकर बो रहा, बीज जिंदगी में जहर के।।
आगे निकलने की होड़ में, कहां जा रहे ये लोग शहर के?
जरा सोच जिंदगी को ‘धर्म’, एक पल ठहर के।।
आगे निकलने की होड़ में, कहां जा रहे ये लोग शहर के?