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यह कविता एक ऐसे शख्स को समर्पित है। जिसने दुनिया में असंभव को संभव कर दिखाया। और अपने दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए, निसंतान अपनी पत्नी के लिए गर्भधारण कर दुनिया के लिए एक मिशाल कायम की।
मर्द का दर्द
न पहुंच जाए,किसी को कोई आघात है।
खुलकर तो बता दूं,मगर अंदर की बात है।।
गर कलम चाहे तो न जाने, क्या क्या लिख डाले।
मगर कुछ ज्यादा ही सोचते हैं,कलम से लिखने वाले।।
फर्क कुछ ज्यादा हो जाता है,अंदर और बाहर में।
जरूर झांक कर देखें,अपने भी यार में।।
क्या पता विश्वास की इमारत में कब दरार आए।
जिसको वफ़ा समझा जुगों से,वही बेवफ़ा नजर आए।।
नहीं कुछ असंभव है आज की सदी में।
आलिया नजर आ सकती है आपको गधी में।।
आज सवाल उठ रहे हैं मर्दों की मर्दानगी में।
नारी बहुत खुश है समलैंगिक शादी में।।
प्यार, मोहब्बत,रूठना,मनाना अब इसके लिए वक्त नहीं है।
सायद अब नारी को मर्दों की जरूरत भी नहीं है।।
सिर्फ नारी ही रहे इस जुग में, गर उसके हो वश में।
मर्द बदनाम यूं ही,प्रेमिका भी झूठी खाती है कसमें।।
पुरुष तो महान है,क्या नहीं किया नारी के वास्ते।
कोख में बच्चे का अंकुर डाल लिया,पता नहीं किस रास्ते।।
नौ महीने तक वह दर्द,तुमने कैसे सहा होगा।
मूर्खता का परिचय दिया, जिसने तुमसे यह करने को कहा होगा।।
नारी के पास तो दो ऑप्शन होते हैं डिलीवरी के।
मगर अब तू उस नादां को निकालेगा किस गली से।।
क्यों असहाय दर्द को तू ऐसे झेल गया।
धन्य है तू आदमी, इक नारी की खुशी के लिए तू जान से खेल गया।।