यह कविता एक ऐसे शराबी व्यक्ति को समर्पित है जो एक दिन मित्रों की पार्टी में कुछ लिमिट से ज्यादा पेग पी लेता है। बाद में जब नशा अपनी चरमसीमा पर आता है। और ज़मीन घूमती हुई नजर आती है। तो वह ‘शराबी-अंदाज़’ में भगवान से जो प्रार्थना करता है। उस प्रार्थना को यह कविता बयां कर रही है।
आज मुझे बचाले पिला गया वह साला।
कल से नहीं पियूंगा मैं शराब का प्याला।।
उसने खुद कम मुझे ज्यादा पिलाई।
हर पेग पीने को उनकी सौगंध दिलाई।।
ऐसा हर शराबी का बयां होता है ।
पीने के बाद दुनियादारी का ज्ञान होता है।।
इसी घटना वाबत कल अचानक आया फोन।
मिस्टर ‘यादव’ “योर बेस्ट फ्रेंड एक्सपायर” प्लीज कम सून।।
जब मैं वहां पहुंचा तो अलग हाल था।
मेरा दोस्त नशे में बेहोश और बेहाल था।।
मैंने कहा दोस्त यह क्या माजरा है।
तू हो गया पागल, पागलखाना आगरा है।।
तुरंत उठाकर उसको ले चले आगरा।
जिंदा पर ही कफन का उड़ाया चादरा।।
रास्ते में जैसे ही रामबाग आया।
गाड़ी रुकवाकर वह जोर से चिल्लाया।।
बोला अरे! मेरे यारो, कुछ याद आ रहा है।
शायद आगे ठेका देशी शराब आ रहा है।।
ज्यादा नहीं एक ठर्रा बोतल लूंगा ।
कर्म खराब रहे अपने, खुदा को रिश्वत दूंगा।।