तानाशाही
जवानी के शहंशाह, बुढ़ापे में लाचार देखे,
बड़े बड़े तीरंदाज भी, हमने तारतार देखे।
गर्व था जिन्हे अपनी हुस्न ए जवानी पर,
ऐसे लोगों के भी हाल, बेहाल देखे ।।
दौलत थी बेशुमार, खरीद सकते थे हिन्दुस्तान को,
ऐसे लोग भी चौराहे पर, कटोरे के साथ देखे।
कुछ लोग मर्दानगी, औरतों पर दिखाते रहे,
ऐसे मर्द भी औरत के आगे लाचार देखे।।
कभी चमड़े के सिक्के जिन्होंने दुनिया में चलाए,
वे लोग भी गिड़गिड़ाते, सालोंसाल देखे।।
ये वक्त का पहिया है, निरंतर घूमता रहता सदां,
तभी तो जो कभी कंगाल थे, वे आज मालामाल देखे।।
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औरत
जिसके खातिर बनाई गई हूं,
उसी के द्वारा सताई गई हूं।
जब भी जरूरत पड़ी जो किसी को,
मैं सोए में अक्सर जगाई गई हूं।।
हवस की निगाहों से सबने देखा ,
जब भी बाजार से आई गई हूं।
जब भी महफ़िल सजाई किसी ने ,
चटाई समझ के बिछाई गई हूं।।
जिसने खुश रखने का दामन जो थामा,
उसी के द्वारा रुलाई गई हूं।
क्यों मैं शिकायत करूं जो किसी से,
खुद अपनों के द्वारा सताई गई हूं।।
धंधे की गुणवत्ता छूपाने के वास्ते,
नुमाइश का हिस्सा बनाई गई हूं।
गुनाह सिर्फ मेरा औरत जो होना,
यही जलील देके चुप कराई गई हूं।।
जिसके खातिर बनाई गई हूं,
उसी के द्वारा सताई गई हूं।