चापलूसी
आज सांप बेरोजगार हो गए ,
क्यूंकि आदमी काटने लगे।
ये देख कुत्ते भी अचंभित है ,
कि तलवे आदमी चाटने लगे।।
तुच्छ स्वार्थ वास्ते कितना गिर गया इंसान,
घर की इज्ज़त को बॉस के सामने बिछाने लगे।
दोस्त की परिभाषा दूषित सी हो गई,
आज दोस्त भी दूसरा मुखौटा लगाने लगे।।
चुगली की परंपरा तो वर्षों पुरानी है,
पर आज मर्द भी इस परंपरा को बख़ूबी निभाने लगे।
मुश्किल है सत्य और झूठ में भेद जानना,
विश्वास की चासनी से झूठ को सत्य ठहराने लगे।।
समाज की जड़ें खोखली आज होती जा रहीं,
खुद के बच्चे संभलते नहीं पर देश को समझाने लगे।
घर में भी सुरक्षित नहीं रहे ‘धर्म’ आज,
घर में ही आस्तीन के सांप नजर आने लगे।।