संत और राजनीति
संतों की गरिमा को यह सरासर ठेस है।
राज भोग ही करना है तो क्यूँ सन्यासी का भेष है।।
मानते हैं कलयुग में सब सरासर जायज है।
सत्य का मर्डर हुआ धर्म अपाहिज है।।
सत्यबाणी, मुक्ति, मोक्ष, संतो का कार्य है।
बर्ना राजनीति में संत?. इसमें झूठ तो अनिवार्य है।।
सब कुछः इस कलयुग में उल्टा ही उल्टा है।
कर्म , धर्म, संयम पर सिर्फ यादव ही टिका है।।
कुछः लोग सक्ति हीन करते हैं, हमें भावना में बहाकर।
बर्ना सक्ति प्रदर्शन द्वापर में भी दिखाया
गोवर्धन पर्वत को ऊंगली पर उठा कर।।
(नोट : इस कविता का भाव किसी की ब्यक्तिगत छवि को ठेस पहुंचाना नहीं है, और यादव शब्द का इस्तेमाल भगवान श्री कृष्ण के पक्ष में किया गया है।)
Tags:
Political Poem