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नारी से पंगा

ऐसी क्या आवश्यकता थी, उद्धव तुझको ऊधम की।
मुंबई कंगना नहीं आपायेगी, उड़ गयीं धज्जियां धमकी की।।

क्यूं पंगा ले बैठा तू, ऐसी पंगेवाली से।
कभी कोई संग्राम न होता, एक हाथ की ताली से।।

नहीं कभी कोई जीता, सर्वत्र पूज्यते नारी से।
कालिदास बना उद्धव, खुद डाली काटी कुल्हाड़ी से।।

इतिहास गवाह है अब तक का, बर्वादी हुई एक गाली से।
पतन का कारण बना हमेशा, जिसने पंगा लिया एक नारी से।।

कायरता का काम किया, तुलना करते वीर शिवाजी से।
पीठ के पीछे वार किया, घर ढाया है गद्दारी से।।

लोकतंत्र की उड़ी धज्जियां, फिर से रावण राज करे।
ऐसा राजा मर जाना अच्छा, जो अपनी प्रजा पर वार करे।।

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