जिंदगी का मकसद



मन भंवरे की तरह उड़ता रहा,

उसे तो हमने कभी रोका ही नहीं।

यह सब छूट जाना है, यहीं इस धरा पर,

यह विचार कमबख्त मैंने सोचा ही नहीं।।

हम सब लगे पड़े हैं करने संचयन बस्तुओं का,

जो आज नहीं तो कल मेरा है ही नहीं।

कुछ ज्यादा ही बढादी हमने मन – तन की ज़रूरतें,

जबकि रोटी, कपड़ा और मकान छोड़ और किसी कि जरूरत है ही नहीं।।

हम नरसंहार तक उतारू हैं सिर्फ अपनी वाह वाह के वास्ते,

जबकि कर्मों के अलावा साथ कोई चीज जानी नहीं।

कुछ देश भय दिखा रहे परमाणु बम का,

कोरोना के चलते अब किसी बम की जरूरत ही नहीं।।

जिंदगी के कुछ पल जियो अपने वास्ते,

वरना पछताने के अलावा अब कुछ बचा ही नहीं।

मानव विनाश हो रहा आज कोरॉना के बहाने,

कहीं श्रृष्टि के प्रलय का कोई समाचार तो नहीं।।

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