दुनियां मे एक बड़ा सुंदर सा रिश्ता है पति पत्नी का। जैसे एक बैलगाड़ी के दो बैल, एक के बिना दूसरा अधूरा और बैलगाड़ी ठप।
इस रिश्ते मे दोनों मे से किसी एक को समझदारी से काम लेना पड़ेगा। अभिमान और स्वाभिमान मे फर्क़ समझना पड़ेगा। न तो अभिमान को स्वाभिमान समझकर, छोटे बड़े का कुतर्कपूर्ण गुमान इस रिश्ते की नींव हिला सकता है। एक रूठे तो दूसरे को झुककर मनाना पड़ेगा। वरना अभिमान की तराजू पर इस रिश्ते के दोनों पलडे बराबर नहीं हो सकते।
इसी रिश्ते के कुछ मीठे अनुभव, अपनी पति पत्नी हास्य कविताके माध्यम से प्रकट किए हैं। आशा है आनंद आयेगा। धन्यवाद।
पति पत्नी
सप्ताहिक धंधा हो गया, मनाने रूठने का।
अब तो डर सा लगा रहता है, रिश्ता टूटने का।।
कभी मायके चली जाऊँगी, तो कभी मरने की धमकी।
मैं ऊब गयी हूं तुमसे, अब ना करुँगी तुम्हारे मन की।।
अब वक्त आ गया सजन, पाप का घड़ा फूटने का। अब तो डर सा लगा रहता है, रिश्ता टूटने का।।
कुछ और ही करते हैं, मुझसे कुछ बोल करके।
अब न हाँ में हाँ मिलाऊँगी, धोखेबाज सजन डरके।।
तुम्हें रोग बहुत बड़ा है, वायदा करके भूलने का। अब तो डर सा लगा रहता है, रिश्ता टूटने का।।
मालिक समझे दिल के, मसीहा जिंदगी के। कसर न छोड़ी कोई, पराठे खिलाए देशी घी के।।
था पूरा हक तुम्हारा, तनख्वा फूंकने का। अब तो डर सा लगा रहता है, रिश्ता टूटने का।।
आँखें थी बंद अब तक, अंधविश्वास था। हर रिश्ते से सर्वोपरि, ये रिश्ता मेरा खास था।।
अब दिल नहीं करता साजन, तुम्हारे साथ घूमने का।
अब तो डर सा लगा रहता है, रिश्ता टूटने का।।
सुनता रहा पति, घूरता रहा अपनी जान को।
आज फिर से ठेस लगी है, मेरी पत्नी के सम्मान को।।
आज फिर मौका आया मेरे मनाने, और उनके रूठने का।
अब तो डर सा लगा रहता है, रिश्ता टूटने का।।
बच्चे हँसे और पापा की गोद आए।
पापा आप ऐक्टर, आखिर क्यों नहीं बन पाये।।
क्या ग़ज़ब अंदाज़ आपके मनाने, और मम्मा के रूठने का। अब तो डर सा लगा रहता है, रिश्ता टूटने का।।
सप्ताहिक धंधा हो गया, मनाने रूठने का।
अब तो डर सा लगा रहता है, रिश्ता टूटने का।।
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Interesting Poem