हार व जीत
हार कभी सोचा नहीं, जिंदगी में जीत ही मंजूर थी।
यह मेहनत का फल कैसा, मेरी जिन्दगी झकझोर दी।।
कोई गुनाह बताये मेरा, आखिर क्या मेरी भूल थी।
मेहनत ही इतनी की, कि हार से बहुत दूर थी।।
मैं हार नहीं सकती, उसे तो हार भी कबूल थी।
आज दर्द-ए-ग़म हार का, वह मरने को मजबूर थी।।
सितम कभी ऐसे, कमबख्त आयेंगे सोचा नहीं।
ख़ुदा की करनी, आखिर क्यों मुझे नामंजूर थी।।
जो नफरत की निशां थी, वह आज सबकी नूर थी।।
हर बार मैं ही जीतूंगी, यह एक मेरी भूल थी।
यह मेहनत का फल कैसा, मेरी जिन्दगी झकझोर दी।।
हार कभी सोचा नहीं, जिंदगी में जीत ही मंजूर थी।
सब कुछ मेरे अनुसार होगा, एक यही तो मेरी भूल थी।
चोट लगी है दिल पर, आज मेहनत भी फिजूल थी।
हार से भी मैंने आज सीखा है दोस्तो।
हारने की वज़ह, मेरी घमंड भरी उम्मीद थी।।
हार कभी सोचा नहीं, जिंदगी में जीत ही मंजूर थी।
यह मेहनत का फल कैसा, मेरी जिन्दगी झकझोर दी
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Motivational Poem