पापा जी
तपती धूप में खुद तप कर, बच्चों को देता छाँव ।
पढ़ा लिखा कर शहर भेजता, खुद रहता है गाँव ।।
पढ़ा लिखा कर शहर भेजता, खुद रहता है गाँव ।।
गर्मी में नहीं गर्मी लगती, नहीं सर्दी में काँपा ।
कोई और नहीं होता वह मानव, वह होते सबके पापा ।।
कोई और नहीं होता वह मानव, वह होते सबके पापा ।।
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जानवर पापा
एक अध्यापक ने बच्चे से, पूछा सवाल कक्षा में।
जानवर के कितने पैर? दो बताये बच्चा ने।।
अध्यापक बोला, पैर दो नहीं चार हैं।
जी पता है, पर चार पैर वाले तो इंसानो से भी होशियार हैं।।
आपने तो बताया था, कि जानवर के दिमाग नहीं होता।
बच्चे पैदा करता है, पर विबाह नहीं होता।।
तो मेरे पापा, भी क्या कम हैं।
माँ मेरे पास है, मेरे पापा गुम हैं।।
तो कोई अतिश्योंक्ति नही, इन्हे जानवर कहने में।
ऐसे दो पैर वाले जानवर से तो अच्छा है, माँ के साथ रहने में।।
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Poem for Kids