Dhokhebaj, धोखेवाज, dhokhewajhindi kavita kunji


धोखेबाज 

मेरी जिन्दगी का हर रिश्ता, बड़ा खास निकला।
जिसे भरोसे का समझा, वही धोखेबाज़ निकला।।

यहाँ तक कि खून के रिश्तों ने तो कमाल कर दिया।
कुछ रिश्ते शरीक माने जाते थे, उन पर भी सवाल कर दिया।।

सीना छप्पन इंच का अमूमन वही बताते हैं।
जो मतलब के लिए थूक कर चाट जाते हैं।।

समाज़ मे क्या औकात है, क्या करना बस मतलब निकले।
चलो वह शख्स मान्य है, जो मर्द के चोले में औरत निकले।।

गज़ब कलयुग है हर रिश्ते में पल पल पर धोखा ही धोखा।
ये देख ताज्जुब था, जब पड़ोसी की दो रोटी खा कुत्त्ता अपने मालिक पर भोंका।।

क्या कहेंगे कौन बुरा कौन अच्छा, कौन झूटा कौन सच्चा।
किस पर यकीन करोगे, आदमी औरत जानबर या बच्चा।।

मेरे ख्याल से सब सही, गलत हम स्वम हैं।
विश्वास करने में कान के साथ, आँख का भी रोल अहम हैं।।

कभी कभी ऐसी परिस्थिति भी हो सकती है।
आँख से टपक रहे आँसू में, मिलावट भी हो सकती है।।

ऐसे में निर्णय करें दिल का सहारा लेके।
वरना हर किसी को शक की नजर से ही देखें।।

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