व्यस्तता हिंदी कविता/best poem on time

आज अमन चैन संतोष, सबका खो गया है।
हर आदमी लगता है, जैसे मशीन हो गया है।।

जिसे पूछो, तपाक से कहता है समय नहीं है।
दौड़ने में लगा है, मंज़िल सुनिश्चित नहीं है।।

पैसे खातिर पसीना, तो कभी ईमान बेचता है।
तब हद हो जाती, जब अपनी जान बेचता है।।

दो वक़्त खाने खातिर, क्या क्या झेलता है।
कभी पेट भी न भरता, जबकि पूरा खेल पेट का है।।

थम्म! ठहर! सोच! यह अनावश्यक दौड क्यों?
वज़ह? सिर्फ इतनी कि लोग कर रहे हैं, तो ऐसी होड़ क्यों?

वक़्त रहते पहिचान अपने आप को, वरना देर हो जायेगी ।
मैं कौन हूँ? का ज़वाब पाने में सारी जिंदगी गुजर जायेगी ।।

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