हिंदी भाषा पर कविता/best poem on hindi

हम आजाद हुए अंग्रेजों से,
पर मन में गुलामी बाकी है।
क्यों आज भी ऐसा लगता है,
जैसे हिंदी इंग्लिश की दासी है।।

हम ठगे ठगे से लगते हैं,
अपने पर ही अभिमान नहीं।
हम ज्ञान समझते इंग्लिश में,
पर हिन्दी का कोई सम्मान नहीं।।

हम आजाद हुए अंग्रेजों से,
पर मन में गुलामी बाकी है।
क्यों आज भी ऐसा लगता है,
जैसे हिंदी इंग्लिश की दासी है।।

कितना कुछ दिया है हिन्दी ने,
भगवतगीता रामायण भी।
प्रतिभा संपन्न हिन्दी मेरी,
सर्वश्रेष्ट कर्तव्यपरायण भी।।

पर्याय, मुहावरे छुपे हुए,
क्या गज़ब की अतिश्योंक्ति है।
क्या खूब मीठे स्वर संबाद लिए,
और स्नेहपूर्ण अभिव्यक्ति है।।

हार्दिक प्यार छलकता है,
मेरे हिंदी अभिवादन में।
वहीं रुखापन है इंग्लिश के,
हैलो, हाय, सोरी और पार्डन में।।

मत चकाचोन्ध में आकर के,
जननी की भाषा भूलो तुम।
न गरिमा कम हो भाषा की,
चाहे बेशक शूली झूलो तुम।।

(सूचनार्थ : भगवतगीता और रामायण का इस्तेमाल कविता की जरूरतानुसार किया गया है हालांकि दोनों महाग्रंथों की भाषा संस्कृत’ है।)

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने