मदिरा ज्ञान
किसी को खुश मिजाजी में, तो किसी को ग़म में जरूरी है।
बिना मदिरा के ऐ- साहिब, भरी महफिल अधूरी है।।
भिखारी से मंत्री तक, यह सब को प्यारी है।
पहले मर्द ही पीते थे, अब तो इसकी भी ग्राहक नारी है।।
कोई पंच सितारे में पीता, तो कोई ठेके में जारी है।
क्या गज़ब की चीज़ है, किसी की जान है तो किसी की हत्यारी है।।
बिना इसके रात तन्हा, दिन लगता भारी भारी है।
बेस्वाद है कमबख्त, फिर भी ललचाती जीभ बेचारी है।।
क्या गज़ब दम रखती, आती प्यार की खुमारी है।
दो पेग में ही साहिब, लगती साठसाला क्वारी है।।
दो पेग में खंण्डन, करता गीता के श्लोकों का।
तीन में मोदी भी नोकर, खुद मालिक तीनों लोकों का।।
कुबेर का भंडार खुलता है, सौदा करता तोपों का।
तो कभी प्रेमिका से कहता, बोल बिस्तर लगादूं नोटों का।।
जिंदगी चार दिन की, क्या रखा है घुट घुट के जीने में।
ग़म भुलाती है ये दारू, दिल में छिपीं गहरी चोटों का।।
धन्य है! तू मर्ज है, और दबाई भी।
ढक्कन खुला तो बर्बादी,वरना अच्छी कमाई भी।।
चंद लम्हों का साथ तेरा, फिर ग़म के ग़म में, ग़म वाले।
धिक्कार है तुझको, कितने घर बर्बाद कर डाले।।
तुझसे तो जुआरी अच्छा, कभी जीत तो कभी हार होती है।
तुझसे तो कमबख्त, हमेशा हार ही हार होती है।।
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पियो तुम डटिके मदिरा
मदिरा में गुण बहुत हैं सदां पियो महाराज।
करती है छणमात्र में छोटे बड़े हर काज।।
छोटे बड़े हर काज बदल दे सबका ढांचा।
जो मिलता नहीं घी दूध,मजा एक पाउच में आता।।
गर पीले अनपढ़ गंवार फटाफट बोले इंग्लिश।
रात पीकर बने नबाव सुबह सब प्लानिंग डिसमिस।।
सुनो सभी मेरे भाई कहे ‘धर्मेंद्र’ कविरा।
चाहे बच्चे भूखे मरें पियो तुम डटिके मदिरा।।
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जीवन की हम सफ़र
प्यार तुझको हाय मैं करूं किस कदर।
तू मेरी जीवन संगिनी मेरे जीवन की हम सफर।।
बड़ी मुश्किल है तेरी अदाएं इस कदर झेलना।
फिर भी चाहते हैं दीवाने तेरे संग खेलना।।
तुझको कैसे बनाया होगा, उस बनाने वाले ने।
वह भी मदहोश हुआ होगा,मदिरा तेरे मयखाने में।।
तेरे क्या जलवे हैं जानम, तू वफ़ा सभी की कहलाती।
जो महसूस तनाव को करता, तू उसे नशे में बहलाती।।
क्या तारीफ करूं तेरी तू देवों में पूजी जाती।
हर महफिल में मेहमानों से पहले मदिरा जी आती।।
हर जगह तुम्हारा है वर्णन चाहे देखो शास्त्र पुराण वेद।
फिर कौन है बेवकूफ ऐसा जो करता मद्यपान निषेध।।
तुम से तो देवी हर मानव, हद से ज्यादा हैं डरते।
तुम कहती हो कि मैं हूं खराब फिर भी लोग सेवन करते।।
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शराबियों की किस्म
मैं पीता नहीं पीली तेरे वास्ता।
सुनिए आज सुनता हूं शराबियों की दास्तां।।
सन सत्तानवे (97) में शराबियों के परीक्षण से आंका गया।
शराबियों की किस्म को चार भागों में बांट गया।।
नंबर चार पर वे प्यार के ठुकराए हुए आशिक आते हैं।
ये घटिया किस्म के शराबी ठेके पे पीने जाते हैं।।
ये ज्यादातर कर्जा लेकर के पीते हैं।
जिंदगी को एक बोझ समझ कर के जीते हैं।।
सूची में नंबर तीन पर उन शराबियों का ब्योरा है।
पीकर जो जी रहे जीवन अधूरा है।।
ये तकरीबन नब्बे फीसदी शादीशुदा हैं।
वाकी दस फीसदी शादी के बावजूद भी अलविदा हैं।।
हर रोज दारू पीकर देर से आते हैं।
दरवाजा अक्सर पड़ोसी का खटखटाते हैं।।
नंबर दो की सूची में संख्या अक्सर कम है।
इनके दिल में कोई ठेस है,या फिर गहरा गम है।।
ज्यादातर ये लोग जोड़े से पीते हैं।
समझ कर चार दिन की चांदनी,जिंदगी को जीते हैं।।
नंबर एक शराबियों में वे अमीर लोग आते हैं।
नेता अभिनेता मंत्री तो कोई बड़े साहब कहलाते हैं।।
बाहर सिर्फ दो पेग, घर बोतल गटक जाते हैं।
सभा संसद महफिल में दारू के दोष गिनाते हैं।।
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रोज की दारू