खुशी ढूंढने वास्ते मैं कहां कहां नहीं गया।
अयोध्या, मथुरा, वृंदावन और काशी, बोधगया।।
कहां मिली खुशी, यह बताना मुश्किल रहा।
थक हार के जब शांत हुआ तो खुशी का ठिकाना स्व दिल रहा।।
बेशकीमती है खजाना, इसे पाने का मंत्र जान लो।
मत मांगो भीख में तुम इसे, बस खुशी से खुशी का दान दो।।
कष्ट पाकर भी गैर के होठों पर मुस्कान दो।
बेफिक्र होकर दूसरों को मान और सम्मान दो।।
सत्य के सानिध्य में अटूट अपनों को विश्वास दो।
पैदा होती मस्तिष्क पटल पर खुशी से चैन की सांस लो।।
अहिंसा के साथ चल आगे रास्ता धर्म का।
जैसी करनी वैसी भरनी साफ न्याय है कर्म का।।