किसी को पूछो तो कहता है,कि बस कट रही है ।
क्या इतनी सस्ती है जिंदगी, जो ऐसे लुट रही है ।।
जिंदगी लगती है , आज जलेबी सी है।
मीठी तो है पर , उलझन सी है ।।
पता ही नहीं लगता, शुरू और अंत का।
आज विचार याद आता है, एक संत का ।।
जिसने कहा था, कि जिंदगी, दलदल सी है।
इसमें एक अंजान, चीज फँसी है ।।
इसे जो पहिचान गया, वह पार है।
वरना ये दलदल, तो अपार है।।
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