मायूस जिंदगी
क्या नहीं है पास तेरे है परेशान क्यों?
आज कर दिया मशीनों ने हर काम तेरा सुलभ,
फिर भी बेवजह लगती है थकान क्यों?
जिंदगी तो संघर्षों का संगम है ऐ ‘धर्म’।
ये तो एक खेल है तू हैरान क्यों?
पुरानी रिश्म रिवाजों को तू आज भी जकड़े बैठा है।
फिर भी आज ज़माने में है बदनाम क्यों?
दर्द की फरियाद को कोई नहीं सुनता यहां।
आखिर बहरे हो गए हैं सबके कान क्यों?
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अफसोस
जब हो गया है पर्दाफाश तो फिर नकाब कैसा?
जानबूझ कर ढाए सितम तो अब पछताव कैसा?
प्यार में गम देना अदा है तुम्हारी।
तो अब अश्क बहाकर यह अफ़सोस कैसा?
आज ज़माने में सरेआम हुआ राज ए गुप्तगू।
उठ चुके नकाब सारे ,अब है दोष किसका?
नादां धर्म प्यार की रस्में निभाता रहा।
बेवफा को वफ़ा समझा है मदहोश कैसा?
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दिल की बोली
हम प्यार को बेरहम ऐसे न घुटने देंगे।
अपने प्यार की निशानी गिरवी न रखने देंगे।।
मानते हैं दर बदर तुम ढूंढते हो अब हमें।
पर अपने दर पे बेवफा तुझे झांकने न देंगे।।
हम प्यार को बेरहम ऐसे न घुटने देंगे।
अपने प्यार की निशानी गिरवी न रखने देंगे।।
तू दिल बेचती है लालची बोली लगाकर।
बहुत पैसा कमाया तूने जिस्म अपना बिछाकर।
अब शरीफों की गली में हम तुझे न बसने देंगे।
हम प्यार को बेरहम ऐसे न घुटने देंगे।
पैसा है तुझ पर घर बसा रहीशों की बस्तियों में।
और-महंगा दिल बिकेगा तेरा ऊंची हस्तियों में।।
तेरे बच्चे भी पढ़ लिखकर उद्योगपति बनेंगे।
हम प्यार को बेरहम ऐसे न घुटने देंगे।।
पल से पल में क्या हो जायेगी औकात तेरी।
शायद विदेशों में पढ़ने जायेगी औलाद तेरी।।
फिर भी भरे बाजार में तुझे खुलेआम न चलने देंगे।
हम प्यार को बेरहम ऐसे न घुटने देंगे।।
अभी भी किसी के दिल को घर समझकर प्यार बसादे।
उस लंबी सूची में से, बच्चों को एक बाप का नाम बतादे।।
बरना तेरे बच्चे भी तुझे मां कहने से इंकार करेंगे।
हम प्यार को बेरहम ऐसे न घुटने देंगे।
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दर्द -ए- जुदाई
उठा तूफान दरिया में, न फिर सैलाव आया।
दर्द -ए- जुदाई में, रोना भी बेहिसाब आया।।
वो बेवफा सरेआम थी, जमाने की नगहों में।
यह जानकर भी हमेशा, मेरे लबों पे उनका नाम आया।।
में पीने से हमेशा, डरता था दोस्तो।
मगर वो ही पिलाने को, पेग भरके शराब लाया।।
काफी अरसा हो गया, वो मर चुके होंगे।
यह सोचकर मेरी लाश पे, करने पथराव आया।।
यकीन तो था कि वो कुछ मुहब्बत -ए- गुल खिलाएंगे।
वो ही मेरा नजरिया कातिल -ए- अंजाम लाया।।
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आदमी अकेला हूं
गम बहुत हैं दिल में, और आदमी अकेला हूं।
फिर भी हर गम को, हंसकर के झेला हूं।।
पता है मुझे यकीनन, ये ले लेंगे जान मेरी।
फिर भी इन गमों के बीच, हंसता हुआ बहला हूं।।
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बेरहम आदमी
गुलशन सजाने को हमेशा, फूल मैं चुनता रहा।
काबिल ए दोस्त को, मैं ढूंढता ही रहा।।
दिल में बसाया आज तक, वे बेरहम आदमी निकले।
जब गुलशन में हाथ डाला, तो फूल भी कागजी निकले।।
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दिल का दर्द
दिल का दर्द बढ़ाने वालो गम की सेज सजाने वालो,
कभी प्यार करके आशिक को ऐसे नहीं जुदा करते हैं।।
गर साथ हमारा तुम देते हंसके तो क्या कर लेता जमाना जलके,
अब बहाने अनेक बनाने वालो खुदगर्जी हमें दिखाने वालो।
अब झूठे अश्कों के वहाने से नहीं दिल दाग धुला करते हैं।
कभी प्यार करके आशिक को ऐसे नहीं जुदा करते हैं।।
कहीं मेरा भी होगा चाहने वाला दिल का दर्द मिटाने वाला।
जल्दी आयेंगे लिखने वालो झूठी कसमें खाने वालो।।
इन झूठे पत्रों की मरहम से नहीं दिल के घाव भरा करते हैं।
कभी प्यार करके आशिक को ऐसे नहीं जुदा करते हैं।।